Goddess Durga is a deity of ethics, power and courage. During Durga puja, devotees worship Durga Maa, sing bhajans and recite mantras. Reciting Durga Kawach during navratri is also an important ritual for devotees. Shri Durga Kawach is very wonderful and powerfull. Durga Kawach is a compilation of shlokas from the Markandey Purana. It is advised, that devotees must pronounced Durga Kawach’s shlokas accurately. Chanting Durga Kawach wrongly decrease the power of the shlokas so it will not help in pleasing goddess Durga. People chant the Durga Kavach during the nine days of Navratri also to please nine incarnation of goddess Durga. Check Shri Durga Kavach in Sanskrit, English and Durga Kawach Story in Hindi.
ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः। ॐ नमश्चण्डिकायै॥
मार्कण्डेय उवाच ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्। यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥१॥ ब्रह्मोवाच अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्। देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥२॥ प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥३॥ पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥४॥ नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥५॥ अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे। विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥६॥ न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे। नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥७॥ यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते। ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥८॥ प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना। ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना॥९॥ माहेश्वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना। लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥१०॥ श्वेतरुपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना। ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता॥११॥ इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः। नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥१२॥ दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः। शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥१३॥ खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च। कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥१४॥ दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च। धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै॥१५॥ नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे। महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥१६॥ त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि। प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥१७॥ दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी। प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥१८॥ उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी। ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥१९॥ एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना। जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥२०॥ अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता। शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥२१॥ मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी। त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥२२॥ शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी। कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी॥२३॥ नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका। अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥२४॥ दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका। घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥२५॥ कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला। ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥२६॥ नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी। स्कन्धयोः खङ्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी॥२७॥ हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च। नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥२८॥ स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी। हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥२९॥ नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा। पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ॥३०॥ कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी। जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ॥३१॥ गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी। पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥३२॥ नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी। रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥३३॥ रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती। अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥३४॥ पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा। ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥३५॥ शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा। अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥३६॥ प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्। वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥३७॥ रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी। सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥३८॥ आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी। यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥३९॥ गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके। पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥४०॥ पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा। राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥४१॥ रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु। तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥४२॥ पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः। कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥४३॥ तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः। यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्। परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥४४॥ निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः। त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥४५॥ इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् । यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥४६॥ दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः। जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः। ४७॥ नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः। स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥४८॥ अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले। भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥४९॥ सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा। अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः॥५०॥ ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः। ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ॥५१॥ नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते। मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्॥५२॥ यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले। जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥५३॥ यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्। तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥५४॥ देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्। प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥५५॥ लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥५६॥
ऋषि मार्कंड़य ने पूछा जभी ! दया करके ब्रह्माजी बोले तभी ॥ के जो गुप्त मंत्र है संसार में ! हैं सब शक्तियां जिसके अधिकार में ॥ हर इक का कर सकता जो उपकार है ! जिसे जपने से बेडा ही पार है ॥ पवित्र कवच दुर्गा बलशाली का ! जो हर काम पूरे करे सवाल का ॥ सुनो मार्कंड़य मैं समझाता हूँ ! मैं नवदुर्गा के नाम बतलाता हूँ ॥ कवच की मैं सुन्दर चोपाई बना ! जो अत्यंत हैं गुप्त देयुं बता ॥ नव दुर्गा का कवच यह, पढे जो मन चित लाये ! उस पे किसी प्रकार का, कभी कष्ट न आये ॥ कहो जय जय जय महारानी की ! जय दुर्गा अष्ट भवानी की ॥ पहली शैलपुत्री कहलावे ! दूसरी ब्रह्मचरिणी मन भावे ॥ तीसरी चंद्रघंटा शुभ नाम ! चौथी कुश्मांड़ा सुखधाम ॥ पांचवी देवी अस्कंद माता ! छटी कात्यायनी विख्याता ॥ सातवी कालरात्रि महामाया ! आठवी महागौरी जग जाया ॥ नौवी सिद्धिरात्रि जग जाने ! नव दुर्गा के नाम बखाने ॥ महासंकट में बन में रण में ! रुप होई उपजे निज तन में ॥ महाविपत्ति में व्योवहार में ! मान चाहे जो राज दरबार में ॥ शक्ति कवच को सुने सुनाये ! मन कामना सिद्धी नर पाए ॥ चामुंडा है प्रेत पर, वैष्णवी गरुड़ सवार ! बैल चढी महेश्वरी, हाथ लिए हथियार ॥ कहो जय जय जय महारानी की ! जय दुर्गा अष्ट भवानी की ॥ हंस सवारी वारही की ! मोर चढी दुर्गा कुमारी ॥ लक्ष्मी देवी कमल असीना ! ब्रह्मी हंस चढी ले वीणा ॥ ईश्वरी सदा बैल सवारी ! भक्तन की करती रखवारी ॥ शंख चक्र शक्ति त्रिशुला ! हल मूसल कर कमल के फ़ूला ॥ दैत्य नाश करने के कारन ! रुप अनेक किन्हें धारण ॥ बार बार मैं सीस नवाऊं ! जगदम्बे के गुण को गाऊँ ॥ कष्ट निवारण बलशाली माँ ! दुष्ट संहारण महाकाली माँ ॥ कोटी कोटी माता प्रणाम ! पूरण की जो मेरे काम ॥ दया करो बलशालिनी, दास के कष्ट मिटाओ ! चमन की रक्षा को सदा, सिंह चढी माँ आओ ॥ कहो जय जय जय महारानी की ! जय दुर्गा अष्ट भवानी की ॥ अग्नि से अग्नि देवता ! पूरब दिशा में येंदरी ॥ दक्षिण में वाराही मेरी ! नैविधी में खडग धारिणी ॥ वायु से माँ मृग वाहिनी ! पश्चिम में देवी वारुणी ॥ उत्तर में माँ कौमारी जी! ईशान में शूल धारिणी ॥ ब्रहामानी माता अर्श पर ! माँ वैष्णवी इस फर्श पर ॥ चामुंडा दसों दिशाओं में, हर कष्ट तुम मेरा हरो ! संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो ॥ सन्मुख मेरे देवी जया ! पाछे हो माता विजैया ॥ अजीता खड़ी बाएं मेरे ! अपराजिता दायें मेरे ॥ नवज्योतिनी माँ शिवांगी ! माँ उमा देवी सिर की ही ॥ मालाधारी ललाट की, और भ्रुकुटी कि यशर्वथिनी ! भ्रुकुटी के मध्य त्रेनेत्रायम् घंटा दोनो नासिका ॥ काली कपोलों की कर्ण, मूलों की माता शंकरी ! नासिका में अंश अपना, माँ सुगंधा तुम धरो ॥ संसार में माता मेरी, रक्षा करो रक्षा करो ॥ ऊपर वाणी के होठों की ! माँ चन्द्रकी अमृत करी ॥ जीभा की माता सरस्वती ! दांतों की कुमारी सती ॥ इस कठ की माँ चंदिका ! और चित्रघंटा घंटी की ॥ कामाक्षी माँ ढ़ोढ़ी की ! माँ मंगला इस बनी की ॥ ग्रीवा की भद्रकाली माँ ! रक्षा करे बलशाली माँ ॥ दोनो भुजाओं की मेरे, रक्षा करे धनु धारनी ! दो हाथों के सब अंगों की, रक्षा करे जग तारनी ॥ शुलेश्वरी, कुलेश्वरी, महादेवी शोक विनाशानी ! जंघा स्तनों और कन्धों की, रक्षा करे जग वासिनी ॥ हृदय उदार और नाभि की, कटी भाग के सब अंग की ! गुम्हेश्वरी माँ पूतना, जग जननी श्यामा रंग की ॥ घुटनों जन्घाओं की करे, रक्षा वो विंध्यवासिनी ! टकखनों व पावों की करे, रक्षा वो शिव की दासनी ॥ रक्त मांस और हड्डियों से, जो बना शरीर ! आतों और पित वात में, भरा अग्न और नीर ॥ बल बुद्धि अंहकार और, प्राण ओ पाप समान ! सत रज तम के गुणों में, फँसी है यह जान ॥ धार अनेकों रुप ही, रक्षा करियो आन ! तेरी कृपा से ही माँ, चमन का है कल्याण ॥ आयु यश और कीर्ति धन, सम्पति परिवार ! ब्रह्मणी और लक्ष्मी, पार्वती जग तार ॥ विद्या दे माँ सरस्वती, सब सुखों की मूल ! दुष्टों से रक्षा करो, हाथ लिए त्रिशूल ॥ भैरवी मेरी भार्या की, रक्षा करो हमेश ! मान राज दरबार में, देवें सदा नरेश ॥ यात्रा में दुःख कोई न, मेरे सिर पर आये ! कवच तुम्हारा हर जगह, मेरी करे सहाए ॥ है जग जननी कर दया, इतना दो वरदान ! लिखा तुम्हारा कवच यह, पढे जो निश्चय मान ॥ मन वांछित फल पाए वो, मंगल मोड़ बसाए ! कवच तुम्हारा पढ़ते ही, नवनिधि घर मे आये ॥ ब्रह्माजी बोले सुनो मार्कंड़य ! यह दुर्गा कवच मैंने तुमको सुनाया ॥ रहा आज तक था गुप्त भेद सारा ! जगत की भलाई को मैंने बताया ॥ सभी शक्तियां जग की करके एकत्रित ! है मिट्टी की देह को इसे जो पहनाया ॥ चमन जिसने श्रद्धा से इसको पढ़ा जो ! सुना तो भी मुह माँगा वरदान पाया ॥ जो संसार में अपने मंगल को चाहे ! तो हरदम कवच यही गाता चला जा ॥ बियाबान जंगल दिशाओं दशों में ! तू शक्ति की जय जय मनाता चला जा ॥ तू जल में तू थल में तू अग्नि पवन में ! कवच पहन कर मुस्कुराता चला जा ॥ निडर हो विचर मन जहाँ तेरा चाहे ! चमन पाव आगे बढ़ता चला जा ॥ तेरा मान धन धान्य इससे बढेगा ! तू श्रद्धा से दुर्गा कवच को जो गाए ॥ यही मंत्र यन्त्र यही तंत्र तेरा ! यही तेरे सिर से हर संकट हटायें ॥ यही भूत और प्रेत के भय का नाशक ! यही कवच श्रद्धा व भक्ति बढ़ाये ॥ इसे निसदिन श्रद्धा से पढ़ कर ! जो चाहे तो मुह माँगा वरदान पाए ॥ इस स्तुति के पाठ से पहले कवच पढे ! कृपा से आधी भवानी की, बल और बुद्धि बढे ॥ श्रद्धा से जपता रहे, जगदम्बे का नाम ! सुख भोगे संसार में, अंत मुक्ति सुखधाम ॥ कृपा करो मातेश्वरी, बालक चमन नादाँ ! तेरे दर पर आ गिरा, करो मैया कल्याण ॥ ॥ जय माता दी ॥
Rishi Markande Ne Puchha Jabhi ! Daya Karke Brahmaji Bole Tabhi ॥ Ke Jo Gupt Mantra Hai Sansar Mein ! Hain Sab Shaktiyan Jiske Adhikar Mein ॥ Har Ik Ka Jo Kar Sakta Upkar Hai ! Jishe Japne Se Beda Hi Par Hai ॥ Pavitra Kawach Durga Balshali Ka ! Jo Har Kaam Pura Kare Sawali Ka ॥ Suno Markande Main Samjhata Hoon ! Main Navdurga Ke Naam Batlata Hoon ॥ Kawach Ki Main Sundar Chopai Bana ! Jo Atyant Hain Gupt Deyun Bata ॥ Nav Durga Ka Kawach Yeh, Padhe Jo Man Chit Laye ! Ush Pe Kisi Prakar Ka, Kabhi Kasht Na Aaye ॥ Kaho Jai Jai Jai Maharani Ki ! Jai Durga Asht Bhavani Ki ॥ Pahli Shailputri Kehlawe ! Doosri Bhramcharni Man Bhawe ॥ Tisri Chandraghanta Shubh Naam ! Chauthi Kushmanda Sukhdham ॥ Panchvi Devi Askand Mata ! Chhati Kaatyayani Vikhyata ॥ Satvi Kaalratri Mahamaya ! Aathvi Mahagauri Jag Jaya ॥ Nauvi Siddhiratri Jag Jane ! Nav Durga Ke Naam Bakhane ॥ Mahasankat Mein Ban Mein Ran Mein ! Rog Koi Upje Nij Tan Mein ॥ Mahavipati Vyohar Mein ! 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Yahi Tere Sir Se Hi Sankat Hatayen ॥ Yahi Bhut Aur Pret Ke Bhay Ka Nashak ! Yahi Kawach Shradha Ve Bhakti Bhadhye ॥ Ishe Nitprati Chaman Shradha Se Padh Kar ! Jo Chahe To Muh Manga Vardan Paye ॥ Ish Stuti Ke Path Se Pahle Kawach Padhe ! Krupa Se Aadhi Bhavani Ki, Bal Aur Budhi Badhe ॥ Shradha Se Japta Rahe, Jagdambe Ka Naam ! Sukh Bhoge Sansar Mein, Ant Mukti Sukhdham ॥ Krupa Karo Mateshawari, Balak Chaman Nadan ! Tere Dar Par Aa Gira, Karo Maiya Kalyan ॥ JAI MATA DI ॥